किसकी विरह में वारिधर फट पड़ा,
क्यों चुपके से सारी रात वो रोता रहा,
अवनी का प्रेम भी कुछ कम ना था,
आगोश में उसके बादल भी लिपटा रहा।
ना जाने वह कौन सा वियोग था,
अवनी बादल का मिलन एक संयोग था,
निशा भी नैन भर मूक देखती रही,
या इस मिलन का खामोशी से सहयोग था।
साक्ष्य है यह धरा और पल्लवित पुष्प,
जो कल तक थी बेजान और शुष्क,
मन मयूर करने लगा है नर्तन,
पुलकित द्रुम दल उल्लास से युक्त।
उर के पीर दृग के नीर बह गए,
मंद पवन सहला के कुछ कह गए,
इंद्रधनुषी आवरण से रँगी धरा,
बादल के निशाँ जमीन पर रह गए।
– सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर