ये धड़कन मेरी गुनगुनाती है क्या-क्या,
मेरे दिल की बातें तू सुनती है क्या-क्या।
खबर अब कहाँ यार कैसे कटेगी,
कि खुश फहमियां भी बढ़ी है क्या-क्या।
वो जीता न हमसे है मलाल हमको,
अरे सोचती यार हारी है क्या-क्या।
जो डूबा है दरिया मे इश्के-मुहब्बत,
मिला सब उसे अब कमी भी है क्या-क्या।
कहे.. शेर ..मैने वो मकबूल होते,
मेरी शख्सियत आज बढ़ती है क्या-क्या।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़