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“यमराज मेरा यार” हास्य व्यंग्य का एक सफल दस्तावेज – इंद्रेश भदौरिया

neerajtimes.com – आज आपाधापी के युग में लोगों के मुख पर मुस्कान का अभाव सा हो गया है। मनुष्य तेरह दूनी आठ के चक्कर में परेशान है। घरेलू परेशानियां उसे इस कदर घेरे हुए हैं कि उनसे उबरना टेढ़ी खीर से कम नहीं है। क्या करे कहां जायें जिससे कुछ आय हो ऐसी ही अधेड़बुन में उलझा मन हंसी ठिठोली के लिए तरश रहा है। माता – पिता बीवी – बच्चे खाना – पीना कपड़ा – लत्ता घर – द्वार फढ़ाई – लिखाई भरण – पोषण आदि इतनी समस्याएं हैं जिनमें मनुष्य ठीक उसी प्रकार उलझा हुआ है जैसे किसी मकड़ी के जाल में कोई नन्ही मक्खी जो छूटने के लाख प्रयत्नों के बावजूद भी छूटने में असमर्थ दिखाई देती है। हर काम में समयाभाव जल्दी जल्दी फिर भी मन को शांति नहीं मिलती और न आवश्यकतायें ही पूरी हो पाती हैं। आसपास का वातावरण और सबसे आगे निकलने की होड़ में जीवन नर्क बन गया है। ऐसे में चेहरे पर मुस्कान कैसे आ सकती है, जब मन में उथल-पुथल जारी है। ऐसा नहीं कि वह मुस्कराना – हंसना – खिलखिलाना नहीं चाहता है। इसी सुख सुविधा के लिए ही तो रातों दिन लगा रहता है लेकिन जहां इसके बावजूद भी आवश्यकतायें पूरी नहीं हो पाती तो खुश कैसे रह सकता है।

कवि साहित्यकार मनुष्य की मनोदशा से भली-भांति परिचित हैं और परोपकारी भाव रखते हुए ऐसे प्रयास किया करते हैं कि मानव के चेहरे पर मुस्कान आ सके।

ऐसे में गद्य और पद्य में हास्य व्यंग्य किसी औषधि से कम नहीं है। यह एक ऐसी गुदगुदी है कि गुदगुदाने में आदमी अपने को छुड़ाने का प्रयास करता है लेकिन वह चाहता है कि उसे और गुदगुदाया जाये ताकि उसे कुछ छण के लिए ही सही लेकिन इस सुख से एक नयी ऊर्जा का संचार हो सके। या यों कहें कि हास्य व्यंग्य एक ऐसा तमाचा है जिसके दर्द में भी सुख की अनुभूति होती है और मानव मन खुशी खुशी इसे सहन कर लेता है और हो सकता है एक और की फरमाइश भी कर दे।

गोंडा की धरती कलम की धनी है क्योंकि यहां बहुत सारे कवि साहित्यकार अपने साहित्य के माध्यम से लोगों में नव उत्साह नव उमंग भरने का प्रयत्न कर रहे है जिनमें देहदानी श्री सुधीर श्रीवास्तव जी भी का नाम अनुकरणीय है। आ. सुधीर श्रीवास्तव जी के ‘यमराज मेरा यार’ हास्य व्यंग्य कविता संग्रह का मुझे पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ। पुस्तक क्या हास्य का गुलदस्ता है इसमें आपने यमराज को अपना दोस्त मानकर उनसे अपनी वेदना प्रकट करने की जो कोशिश की है वह अनुकरणीय है। और लोगों को यह सोचने पर विवश करती है कि मन को गुदगुदाने में यमराज जैसे देवता जो डर का अभिप्राय माने जाते हैं वह भी सहायक हो सकते हैं। एक दो नहीं पूरे संग्रह में यमराज और खुद के माध्यम से अपने कटाक्ष रखने का प्रयास बहुत ही नवीनता लिए हुए अनुकरणीय बन पड़ा है जो हर मोड़ पर मानवीय समाज के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए काफी है आप दोनों की बातचीत करते हुए इतना सुरुचिपूर्ण लगता है कि पुस्तक को बीच में छोड़ने का मन ही नहीं करता। पुस्तक क्या? समाज में फैली हुई तमाम समस्याओं की ओर इंगित कराते हुए उससे बाहर निकलने का एक सफल दस्तावेज है जो जन मानस के हृदय में नव उमंग भरने में कामयाब होगी ऐसा मेरा मानना है और आदरणीय को अपने श्रम और मन्तव्य को शत प्रतिशत शत सार्थक करेगी। ऐसा मेरा ही नहीं सभी मनीषियों का मानना हो सकता है।

मेरी तरफ से इस पुनीत कार्य के लिए देहदानी कविवर सुधीर श्रीवास्तव को बहुत बहुत हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। आप नयी सोच के साथ अपने साहित्य से लोगों को नयी दिशा ज्ञान देते रहें। मैं आपके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं।

– इन्द्रेश भदौरिया, रायबरेली, उत्तर प्रदेश

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