पिता के स्नेह की शीतल सी छांव-
मयस्सर वहीं, जहां सुख का ठहराव,
ढूंढता है शैशव मां का ममत्व-
सृष्टि का वही सबसे सुंदर पड़ाव।
टूटी सी कुटिया में मुरझाया मन-
छाया में जलता है व्याकुल बदन,
कष्टों के चुभते हैं निश दिन ही शूल-
सूखा है जीवन का सुरभित चमन।
सिसकता है जीवन पीड़ा है खूब-
बरगद के साए में करवट ले धूप,
अभावों के घेरे में कैदी हर पल-
अपने पराए हैं दूजे अपरूप।
छांव तले धूप पले, कैसा गजब है?
आसमां के साए तले भू बेसबब है.
– डा. अंजु लता सिंह गहलौत,नई दिल्ली