मनोरंजन

सार – प्रीति यादव

क्या कुछ मैंने खोया, क्या कुछ पाया,

क्या था मेरा अपना, जो हाथ न आया।

 

शायद नहीं सहेजा कुछ अपना समझ,

जाने दिया उसे जो जा रहा था अबूझ।

 

खाली हाथ ले खड़ी रही मैं दोराहे पर,

छीन गया जो छीना जा सका चौराहे पर।

 

हक ना जताया, ना किसी को ये बताया,

छीनने वाला अपना ही था ना कि पराया।

 

शब्द भी महत्वहीन हैं करने को आलाप,

शांत रहना ही उचित, व्यर्थ है कोई विलाप।

– प्रीति यादव, इंदौर , मध्य प्रदेश

Related posts

फागुन आया – झरना माथुर

newsadmin

गीतिका – मधु शुक्ला

newsadmin

छंद – जसवीर सिंह हलधर

newsadmin

Leave a Comment