मनोरंजन

पर्दा उठता झूठ का – डॉo सत्यवान सौरभ

वक्त कराता है सदा, सब रिश्तों का बोध।

पर्दा उठता झूठ का, होता सच पर शोध।।

 

लौटा बरसों बाद मैं, उस बचपन के गांव।

नहीं बची थी अब जहां, बूढ़ी पीपल छांव।।

 

मूक हुई किलकारियां, गुम बच्चों की रेल।

गूगल में अब खो गये, बचपन के सब खेल।।

 

धूल आजकल फांकता, दादी का संदूक।

बच्चों को अच्छी लगे, अब घर में बंदूक।।

 

स्याही, कलम, दवात से, सजने थे जो हाथ।

कूड़ा-करकट बीनते, नाप रहे फुटपाथ।।

 

चीरहरण को देखकर, दरबारी सब मौन।

प्रश्न करे अँधराज से, विदुर बने अब कौन।।

 

सूनी बगिया देखकर, तितली है खामोश।

जुगनू की बारात से, गायब है अब जोश।।

 

अंधे साक्षी हैं बनें, गूंगे करें बयान ।

बहरे थामें न्याय की, ‘सौरभ’ आज कमान ।।

 

अपने प्यारे गाँव से, बस है यही सवाल ।

बूढा पीपल है कहाँ, कहाँ गई चौपाल ।।

 

गलियां सभी उदास हैं, पनघट हैं सब मौन ।

शहर गए उस गाँव को, वापस लाये कौन ।।

 

छुपकर बैठे  भेड़िये, लगा रहे हैं दाँव ।

बच पाए कैसे सखी, अब भेड़ों का गाँव ।।

 

नफरत के इस दौर में, कैसे पनपे प्यार ।

ज्ञानी-पंडित-मौलवी, करते जब तकरार ।।

 

आज तुम्हारे ढोल से, गूँज रहा आकाश ।

बदलेगी सरकार कल, होगा पर्दाफाश ।।

 

सरहद पर जांबाज़ जब, जागे सारी रात ।

सो पाते हम चैन से, रह अपनों के साथ ।।

 

दो पैसे क्या शहर से, लाया अपने गाँव ।

धरती पर टिकते नहीं, अब ‘सौरभ’ के पाँव।।

 

नई सदी ने खो दिए, जीवन के विन्यास ।

सांस-सांस में त्रास है, घायल है विश्वास ।।

— डॉo सत्यवान सौरभ,  333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045 मोबाइल :9466526148, 01255281381

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