छोटा सा कलम सिपाही हूँ , ये ही मेरा है अफसाना ।
छंदों में द्वन्द बांधता हूँ , जानूँ कविता लिखना गाना ।।
ये शब्द ब्रह्म आकाश तत्व ,इनकी सीमा का अंत नहीं ।
कविता मन में कैसे आयी ,वाणी पर लगा हलंत नहीं ।।
मुझको ऐसा लगता है मैं ,इसी प्रयोजन से आया हूँ ।
मैं गाँव गली में पला बढ़ा ,मेरा कोई कवि कंत नहीं ।।
गाली से हो आरंभ बात ,गोली पर होती ख़त्म जहाँ ।
ऐसे मौसम की छाया में ,सीखा है हँसना मुस्काना ।।
छोटा सा कलम सिपाही हूं ये ही मेरा है अफसाना ।।1
सूरज की गर्मी देखी है ,चंदा की छाया देखी है ।
कुछ बुरा वक्त भी देखा है ,पैसे की माया देखी है ।।
मोती के सब सौदागर हैं ,आँसू का मोल नहीं मिलता।
सुनसान पड़े वीरानों में, भूतों की काया देखी है ।।
वो पत्थर का भगवान हमें ,मंदिर में बैठा दिखता है।
पर मेरा मन ये कहता है ,मानव मन उसका तहखाना ।।
छोटा सा कलम सिपाही हूं ये ही मेरा है अफसाना ।।2
कुछ मुक्त छंद फनकार यहाँ, साहित्य सदन में बैठे हैं।
कुछ कविता ठेकेदार यहाँ , मंचों पर तन कर बैठे हैं ।।
कुछ जोड़ तोड़ में माहिर हैं ,कुछ चाटुकार नेताओं के ।
अपने इस गुण के कारण ही , वो सिंहासन हर बैठे हैं ।।
कुछ लमहे और बिताने हैं , इस सघन उपेक्षा में मुझको ।
यदि इससे अधिक लिखूँगा तो देना पड़ जाए हर्जाना ।।
छोटा सा कलम सिपाही हूं ,ये ही मेरा है अफसाना ।।3
मेरा भी कभी वक्त होगा , होता मन में विश्वास यही ।
इन राजनीति के खेमों में , निष्पक्ष बनेगी खास बही ।।
इसमें मेरा अपराध नहीं ,आया में कृषक घराने से ।
बेशक सारा पथ दुर्गम है , चलने का है अभ्यास सही ।।
लकिन मैं हार न मानूँगा, कविता तो लिखता जाऊँगा।।
कविता के दम से ही”हलधर “,जायेगा जग में पहचाना ।।
छोटा सा कलम सिपाही हूं ये ही मेरा है अफसाना ।।4
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून