मनोरंजन

मेरी कलम से – डॉ. निशा सिंह

टेक देती है घुटने मंज़िलें भी आकर फिर।

हौसले जिगर में जब भी जवान होते हैं।।

 

टूट जाए ‘नवल ‘न दिल  कोई।

इसलिए हम  ख़ता से  डरते हैं।।

 

ये हमें बचाते हैं ग़म की धूप से हरदम।

वालिदैन सबके ही सायबान होते हैं।।

माँ ने बेटे चार  जने  पाले  पोसे।

इक माँ को दो वक़्त खिलाना मुश्किल है।।

 

मुआफ़ करना सीखिए किसी की भूल को “नवल”।

यहाँ है  ऐसा  कौन जिसने की कोई ख़ता नहीं।।

– डॉ. निशा सिंह ‘नवल’, लखनऊ, उत्तर प्रदेश

Related posts

ग़ज़ल – रीता गुलाटी

newsadmin

ग़ज़ल – झरना मथुर

newsadmin

ग़ज़ल – रीता गुलाटी

newsadmin

Leave a Comment