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हिंदी के प्रकाश-पुंज को आलोकित करने का पर्व है हिन्दी दिवस – सुनील कुमार महला

neerajtimes.com – 14 सितंबर को हर साल हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन यानी कि 14 सितंबर 1949 को भारत की संविधान सभा द्वारा हिंदी को भारत संघ की राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया था। वास्तव में सितंबर का महीना विशेष रूप से हिंदी को समर्पित है और इस महीने में हम सभी हिंदी में अधिकाधिक सरकारी कामकाज करने का संकल्प भी लेते हैं। हिंदी दिवस, हिंदी पखवाड़ा के दौरान देश के प्रत्येक केंद्रीय सरकारी कार्यालयों में हिंदी पर अनेक प्रतियोगिताओं, संगोष्ठियों, सेमिनारों का आयोजन किया जाता है और पुरस्कार भी बांटे जाते हैं। हम न केवल सरकारी कामकाज करने में बल्कि अपने दैनिक जीवन में भी हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करने का संकल्प लेते हैं ,लेकिन यहां यह विचार करने की आवश्यकता है कि आखिर क्या कारण हैं कि एक हिंदी बाहुल्य वाले देश में हमें हिंदी को आगे बढ़ाने के लिए दिवस मनाना पड़ रहा है और इसके अधिकाधिक प्रचार प्रसार के लिए पुरस्कार तक बांटने पड़ रहे हैं। वास्तव में यदि हमें हिंदी भाषा का विकास करना है तो हमें संविधान की आठवीं अनुसूची में निहित सभी भारतीय भाषाओं को एक साथ लेकर चलना होगा। हिंदी को सभी भारतीय भाषाओं से शब्द अपने में समाहित करने होंगे तभी इसका शब्दकोश और अधिक व्यापक बन सकेगा। विकीपीडिया पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार अनुच्छेद 351 ‘भारत के संविधान का एक अनुच्छेद है। यह संविधान के भाग 17 में शामिल है और संघ की राजभाषा के विशेष निदेश का वर्णन करता है। यह अनुच्छेद हिंदी भाषा के प्रसार और विकास को सुनिश्चित करता है और साथ ही इस उद्देश्य हेतु संघ या राष्ट्रीय सरकार के कर्तव्यों को भी व्याख्यायित करता है। इस अनुच्छेद में यह कहा गया है कि संघ को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हिंदी भारत के विविध सांस्कृतिक तत्वों के लिए अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके। इसमें हिंदी की विशिष्ट विशेषताओं हिंदुस्तानी जैसी अन्य भारतीय भाषाओं और भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में निर्दिष्ट भाषाओं में उपयोग किए जाने वाले रूपों, शैली और अभिव्यक्तियों को बदले बिना आत्मसात करने का निर्देश दिया गया है। इस अनुच्छेद में यह भी वर्णित है कि संघ को संस्कृत पर प्राथमिक ध्यान देने के साथ-साथ जहाँ आवश्यक या वांछनीय हो वहाँ अन्य भाषाओं की शब्दावली का उपयोग करके हिंदी को समृद्ध करने का प्रयास करना चाहिए।’  दरअसल, आज अंग्रेजी भाषा को ही हम अधिक महत्व दे रहे हैं, क्योंकि एक आम सोच यह विकसित हो चुकी है कि अंग्रेजी के बिना कोई भी काम नहीं चल सकता है, जबकि यह सोच बहुत ही तुच्छ और ग़लत है। भाषा कोई भी हो,कभी अच्छी व बुरी नहीं होती है। सभी भाषाएं अपने आप में अच्छी हैं और उनका अपना शब्दकोश व व्याकरण है। हिंदी का अपना एक व्यापक शब्दकोश है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं। हिन्दी लिखने के लिये प्रयुक्त देवनागरी लिपि अत्यन्त वैज्ञानिक है। हिंदी को संस्कृत शब्द संपदा एवं नवीन शब्द-रचना-सामर्थ्य विरासत में मिली है। यह भी एक तथ्य है कि देशी भाषाओं एवं अपनी बोलियों आदि से शब्द लेने में संकोच नहीं करती। अंग्रेजी के मूल शब्द लगभग 10,000 हैं, जबकि हिन्दी के मूल शब्दों की संख्या ढाई लाख से भी अधिक है। एक आंकड़े के अनुसार आज हिन्दी बोलने एवं समझने वाली जनता पचास करोड़ से भी अधिक है। इतना ही नहीं, हिंदी दुनिया की  तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है और इसका साहित्य सभी दृष्टियों से समृद्ध है। हिन्दी आम जनता से जुड़ी भाषा है तथा आम जनता हिन्दी से जुड़ी हुई है। हिंदी भारत के स्वतंत्रता-संग्राम की वाहिका और वर्तमान में देशप्रेम का अमूर्त-वाहन है। यह भारत की सम्पर्क भाषा है। हिंदी आज पत्रकारिता, सोशल नेटवर्किंग साइट्स, इंजीनियरिंग, मेडिकल, साइंस, स्पेस समेत अनेक क्षेत्रों की भाषा है और कोई क्षेत्र ऐसा बचा नहीं है जहां हिंदी का प्रयोग नहीं हो रहा है। यह बहुत ही सरल,सहज व वैज्ञानिक दृष्टिकोण लिए हुए बहुत ही शानदार व सशक्त भाषा है। आज हिंदी भाषा में लगभग 1.5 लाख शब्द हैं और अध्ययन की सभी शाखाओं के तकनीकी शब्दों को मिलाकर लगभग 6.5 लाख शब्द हैं, जो कि काफी अच्छी संख्या है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज विज्ञान और मानविकी की सभी शाखाओं को सम्मिलित करने पर हिंदी का एक व्यापक शब्द-भंडार बनता है। हम अंग्रेजी सीखें, विश्व की अन्य कोई भी भाषाएं सीखें, पढ़ें, लिखें और बोलें लेकिन अपनी स्वभाषा को कभी भी नहीं छोड़ें, क्योंकि जो बात हम अपनी स्वयं की भाषा में सहजता से किसी दूसरे तक पहुंचा सकते हैं, वह किसी अन्य भाषा में नहीं। हिंदी हमारे देश की संस्कृति, हमारी सभ्यता, हमारी अखंडता, हमारी अनेकता में एकता की अनूठी पहचान है।  भारतवर्ष के संविधान के भाग-5 के अनुच्छेद 120, भाग-6 के अनुच्छेद 210 एवं संविधान के भाग-17 में अनुच्छेद 343 से 351 में राजभाषा हिंदी संबंधी प्रावधान किए गए हैं। इन्हीं प्रावधानों के अनुक्रम में जारी अधिनियमों नियमों आदेशों एवं निर्देशों के अनुपालन में भारत सरकार राजभाषा हिंदी के विकास एवं प्रचार प्रसार के लिए लगातार प्रयासरत है। भारत के नागरिक होते हुए हम सभी को यह जानकारी होनी चाहिए कि राजभाषा विभाग गृह मंत्रालय द्वारा प्रतिवर्ष जारी किए जाने वाले राजभाषा संबंधी वार्षिक कार्यक्रम में दिए गए नीति-निर्देशों का सही से अनुपालन एवं विभिन्न लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में कार्य करना संघ सरकार के प्रत्येक कार्यालय का कर्तव्य है। देश के प्रत्येक नागरिक को यह चाहिए कि राजभाषा नीति के कार्यान्वयन के क्षेत्र में वे अपनी अग्रणी भूमिका निभायें। यह ठीक है कि आज अंग्रेजी विश्व स्तर की भाषा बनकर उभरी है लेकिन राजभाषा हिंदी के सर्वोच्च शिखर पर कायम रहना वास्तव में एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। आज केंद्रीय सरकार के सभी कार्यालयों में प्रयोग की जाने वाली हमारी सरल और सहज राजभाषा हिंदी के विकास और प्रगति के लिए कुछ बिंदुओं पर हमेशा ध्यान देने की जरूरत है जैसे कि क और ख क्षेत्र में स्थित कार्यालयों के साथ राजभाषा हिंदी में किया जा रहा शत प्रतिशत पत्राचार बनाए रखा जाए। साथ ही साथ अंग्रेज़ी में प्राप्त पत्राचार आदि का जवाब नियम-5 के तहत राजभाषा हिंदी में दिया जाए। केंद्रीय सरकार के कार्यालयों में  कार्यालय टिप्पणी (नोटिंग) में यथासंभव राजभाषा हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग किया जाए। इतना ही नहीं, प्रत्येक डाक को राजभाषा हिंदी में चिह्नित (मार्क) किया जाकर हिंदी को बढ़ावा दिया जा सकता है। कार्यालयों में केवल यूनिकोड फॉट का प्रयोग सुनिश्चित किया जाए एवं इंस्क्रिप्ट ‘की-बोर्ड’ का प्रयोग बहुत ही महत्वपूर्ण है। केंद्रीय सरकार के कार्यालयों को यह चाहिए कि पात्र अधिकारियों और कार्मिकों के ए पी ए आर एवं सेवा पुस्तिकाओं में राजभाषा में उत्कृष्ट कार्य निष्पादन संबंधी प्रविष्टियां प्रतिवर्ष सुनिश्चित करें। हम सभी को यह याद रखना चाहिए कि राजभाषा हिंदी में कार्य करना हम सभी का संवैधानिक व नैतिक दायित्व है। हम सभी फाइलों में हिंदी में अधिकाधिक कार्य करें और पंजिकाओं का हिंदी में रख-रखाव करें। हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम हिंदी भाषा के अधिकाधिक प्रचार प्रसार के लिए राजभाषा के नीति निर्देशों समीक्षाओं और निरीक्षण रिपोर्टों के अनुसार निर्धारित लक्ष्यों हेतु ठोस उपाय एवं जांच बिंदु सुनिश्चित करें एवं हमेशा हिंदी में मूल रूप से कार्य करें। राजभाषा के प्रयोग, इसके प्रचार एवं प्रसार के लिए राजभाषा प्रतिज्ञा का पालन सुनिश्चित करें।हिंदी बहुत सरल और लचीली भाषा है, जिसे सीखने में किसी विशेष कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है। हिंदी एक मात्र ऐसी भाषा है जिसके अधिकतर नियम अपवादविहीन है।  विश्व के 132 देशों में जा बसे भारतीय मूल के लगभग 2 करोड़ लोग हिंदी माध्यम से ही अपना कार्य निष्पादित करते हैं। एशियाई संस्कृति में अपनी विशिष्ट भूमिका के कारण हिंदी एशियाई भाषाओं से अधिक एशिया की प्रतिनिधि भाषा है। हमें यह याद रखना चाहिए कि राष्ट्र शरीर है तो धर्म उसकी आत्मा और भाषा उसकी सांस्कृतिक संवाहक। बिना अपनी मातृभाषा के कोई भी संस्कृति मूक होकर मृतप्राय हो जाती है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज सांस्कृतिक और पारंपरिक महत्व को समेट हिंदी अब विश्व में लगातार अपना फैलाव कर रही है। देश-विदेश में इसे जानने-समझने वालों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है।  इस समय विश्व के लगभग 150 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है जो हिंदी के बढ़ते प्रयोग और प्रभाव का संकेतक है। निस्संदेह हिंदी दुनिया की सर्वाधिक तीव्रता से प्रसारित हो रही भाषाओं में से एक है। आंकड़ों की बात करें तो आज विश्व में हिंदी भाषी करीब 70 करोड़ लोग हैं। यह तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। 1.12 अरब बोलने वालों की संख्या के साथ अंग्रेजी पहले स्थान पर है। चीनी भाषा मेंडरिन बोलने वाले करीब 1.10 अरब हैं। 51.29 करोड़ और 42.2 करोड़ के साथ स्पैनिश और अरबी का क्रमश: चौथा और पांचवां स्थान है। तो आइए हम अपनी भाषा को एक प्रकाश पुंज के रूप में हमेशा आलोकित करने की दिशा में आगे बढ़ें।(विनायक फीचर्स)

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