तुम्हे राज दिल का बताई नही थी.
गुजारी तडफ कर जताई नही थी।
निभाऊँ मैं कैसे रस्में मुहब्बत ?
वो उल्फत भी तूने दिखाई नही थी।
हुआ इश्क तुमसे कहूँ आज कैसे?
लगी चोट दिल पर, बताई नही थी।
तुम्हे आज पूजा बना देवता सा.
बनी मैं दिवानी, खुदाई नही थी।
गये छोड कर यार मुझको कभी के.
तेरी याद मे मुस्कुराई नही थी।
सुलग मैं रही हूँ कि यादो मे तेरी.
मगर आग तूने बुझाई नही थी।
सहूँ मैं जुदाई सनम अब अकेले,
मिला दर्द जब हिचकिचाई नही थी।
सितम से भरी वो कही दास्ता थी,
कहानी कभी जो सुनाई नहीं थी।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़