गिराना केश आनन पर,
तनिक हमको नहीं भाये।
दिखाई दे ना आनन तो,
कहो कैसे हमें भाये।
हमें भाता सदा प्रियवर,
गगन पर पूर्ण सा चंदा।
अमावस से भरी रातें,
हमें बिल्कुल नहीं भाये।
हटा लो तुम लटें अपनी,
कि देखें सुर्ख सा चितवन।
अजी घबरा रहे हो क्यों,
शलभ पीते सदा मकरंद।
हमारे नैन ये चंचल,
कहीं गुस्ताखियां कर दें।
नजर भर के सखे तकना,
सदा होती रहे स्पंदन।
– सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर