है आसमाँ इक सा यहाँ इक जैसी धरा है ।
फिर भी ग़मों के सिंधू में डूबा ये वरा है।।
कुछ लोग हैं भूखे यहाँ चिथड़े हैं बदन पर।
कुछ लोग का घर रोटी-ओ-कपड़ो से भरा है।।
अमीरी का नशा छाए “नवल” तो देखना पीछे।
गये दुनिया से सब ख़ाली कलंदर या सिकंदर हो।।
प्यार होता बहुत ही जताना कठिन।
भूलना भी कठिन है निभाना कठिन।
ज़िन्दगी नाम है इमरोज़ में जी लेने का ।
तुम “नवल” कल के लिए आज को ज़ाया न करो ।।
– डॉ. निशा सिंह ‘नवल’, लखनऊ, उत्तर प्रदेश