मनोरंजन

बीस वर्ष – सविता सिंह

वर्षों बाद, दी सुनाई,

वही आवाज, उसी नाम से

पुकारा किसी ने

भीड़ को चीरती हुई

कानों से दिल तक,

रुक गए कदम

धड़क उठा मन।

पलट के देखा! हाँ तुम थे।

हजारों की भीड़ में

सिर्फ तुम दिखे,

तुम्हारी नजर भी

हम पर ही टिकी।

वह बीस वर्ष

पलक झपकते

तैर गई आंखों पर।

मूक अधर सवाल पूछती नजर

कहाँ थे, थे किधर?

अभी भी रखे हो

वही काला कुर्ता

उसने बयान कर दिया, तुम्हारा हाल,

जेहन में अभी भी मेरा ख्याल।

वेदना, संवेदना, सबको छिपाती

सब को दबाती,

फिर भी समझ गए

तुम भी मेरा हाल।

उर में थी कैसी अगन

कैसे बढ़ाऊँ मैं अपनी कदम।

जी चाह रहा था

ना करूँ जमाने की फिक्र

रो लूँ कंधे पर रख कर सर।

सहसा आवाज आई

चलो भी कहाँ खो गई,

फिर बीस वर्ष पलट गये

आ गई यथार्थ पर पर।

आज ना जाने क्यों

बेमतलब बेवजह

इनसे लड़ झगड़ कर

बहुत रोई तकिया भिगोई।

शायद वो बीस वर्ष पुराना दर्द

हावी हुआ आज पर.

दफन ही रहें तो बेहतर

दर्द कर लुँगी कम

फिर रो धोकर।

– सविता सिंह मीरा . जमशेदपुर

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