जग की महिमा चाल न पूछो,
कितना प्यारा माल न पूछो।
मीठी बातें, घातक आखें,
मोटी कितनी खाल न पूछो।
आँत न दाँत मगर लख नारी,
टपके कितनी राल न पूछो।
मित्र, पड़ोसी, बोली, रिश्ते,
बदला कितना काल न पूछो।
दिल दिमाग की खींचातानी,
में उलझे का हाल न पूछो।
किस स्याही से ईश लिखा है,
माँ बहनों का भाल न पूछो।
जिल्द चढ़ा हर आनन हो जब,
क्यों खार लगे ससुराल न पूछो।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश