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प्रियतम – अनुराधा पाण्डेय

ओष्ठ की मादक छुवन,

महका गई हर साँस प्रियतम!

आज तक बाकी तुम्हारा,चुंबनी आभास प्रियतम !

प्रश्न वाचक चिह्न सारे ,

उत्तरित हो मर चुके हैं।

शेष थे जो भाव “मैं” के,

अस्ति से अब झर चुके हैं।

प्रेम ने नूतन रचा है,स्वस्ति का विन्यास प्रियतम!

आज तक बाकी तुम्हारा—

वे सुमन जो खिल गये थे,

नेह मय आलिंगनों में।

दूर रहकर सद्य भी वे,

मूर्त लगते धड़कनों में।

एक दिन भी अब न पतझर,अनवरत मधुमास प्रियतम!

आज तक बाकी तुम्हारा—

मृदु मिलन की जो निशा थी,

स्वप्न में नित गीत गाती।

प्रीत लहरें नित्य मुझको,

उस पुलिन तक खींच लाती।

घोलती वे ही विरह में,छंद में अनुप्रास प्रियतम!!

ओष्ठ की मादक छुवन,

महका गई हर सांस प्रियतम!

आज तक बाकी तुम्हारा,चुंबनी आभास प्रियतम!

– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली

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