( 1 ) तुझे
ढूंढती हुई बहेगी,
ये हवा तेरी गली तलक !
छिप जाए भले ही तू कहीं भी…..,
आ ही जाएगी ख़ुशबू चलके हम तक !!
( 2 ) ढूंढती
हुई चलें राहें,
चहुँ दिशाओं से तेरे घर तक !
तू भले ही भूल गया हो हमें…..,
पर, हम न भूला पाए हैं तुझे अब तक !!
( 3 ) हुई
मुद्दतें करे मुलाक़ात,
है फिर भी याद वो आख़री रात !
कहा था तुमने कि, रहे यदि हम जीवित…,
तो, फिर मिल बैठ करेंगे खूब गुफ़्तगू बात !!
सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान