ग़मों के हज़ारों ठिकाने मिलेंगे।
मगर ख़ुशियों के तुम ख़ज़ाने लुटाना ।।
कभी मिलने मुझे आओ तो मौसम आशिक़ाना हो।
शुरू हों प्यार के नग़्में ग़ज़ल भी सूफ़ियाना हो।
मेरी चाहत नही दुनिया की दौलत जीत लेने की,
तुम्हारे दिल में बस छोटा सा मेरा आशियाना हो।
यह जीवन बेड़ा नफरत से,तुम पार न पाओगे।
पापों में लीन रहोगे तो , उद्धार न पाओगे।
परहित में कर्म करो कुछ तो, जब आये हो जग में ,
पावन सा मन, यह मानुष तन,हर बार न पाओगे।
डॉ. निशा सिंह ‘नवल’ (लखनऊ)