मनोरंजन

मेरी कलम से – डॉ. निशा सिंह

ग़मों के हज़ारों ठिकाने मिलेंगे।

मगर ख़ुशियों के तुम ख़ज़ाने लुटाना ।।

 

कभी  मिलने मुझे आओ तो मौसम आशिक़ाना  हो।

शुरू   हों प्यार   के नग़्में ग़ज़ल  भी  सूफ़ियाना  हो।

मेरी  चाहत   नही दुनिया की  दौलत  जीत लेने  की,

तुम्हारे दिल   में बस  छोटा सा मेरा आशियाना  हो।

 

यह  जीवन  बेड़ा नफरत  से,तुम  पार न पाओगे।

पापों   में  लीन  रहोगे  तो , उद्धार  न पाओगे।

परहित में कर्म करो कुछ तो, जब आये हो जग में ,

पावन  सा मन, यह मानुष तन,हर बार न पाओगे।

डॉ. निशा सिंह ‘नवल’ (लखनऊ)

Related posts

थोड़ा सा उजाला – सविता सिंह

newsadmin

शब्द मेरे अर्थ तेरे – सविता सिंह

newsadmin

ग़ज़ल – रीता गुलाटी

newsadmin

Leave a Comment