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कविता – जसवीर सिंह हलधर

मज़हब की उठती लहरों पर,ले अपनी नाव उतर जाते ।

बटवारा घर का रुक जाता ,बापू कुछ ऐसा कर जाते ।।

 

सब शक्ति परक प्रतिमानों पर , होता प्रचण्ड भारत मेरा ।

दुनिया में धाक अलग होती , दिखता अखण्ड भारत मेरा ।

उत्पादन से उपभोग तलक, सब अर्थ तंत्र अंदर होता ।

इतिहास बदल जाता बापू, भूगोल  बहुत  सुंदर होता ।

तब चीन सरीखे मुल्कों के ,दावे निर्मूल बिखर जाते ।।

बटवारा घर का रुक जाता ,बापू कुछ ऐसा कर जाते ।।1

 

गिलगित से गारो पर्वत तक ,बस भारत ही भारत होता ।

यदि सम्मुख आता चीन मुल्क वो दुनिया से गारत होता ।

भारत से तब टकराने की ,कोई नादानी ना करता ।

अमरीका जैसा देश , हमारे सम्मुख तब पानी भरता ।

सब पंख रूस,ब्रिटेन फ्रांस  के ,अपने आप कतर जाते ।।

बटवारा घर का रुक जाता ,बापू कुछ ऐसा कर जाते ।।2

 

नेहरू के सम्मुख लोह पुरुष ,खुद किया आपने था दुर्बल ।

भगवान मान पूजा होती , यदि करते ना यह काज निबल ।

जिन्ना पटेल दोनों को यदि ,संयुक्त प्रधान चुना होता ।

भारत माता का दुनिया में ,वैभव तब कई गुना होता ।

नेहरू को समझाते बापू ,सारे मत भेद सुधर जाते ।।

बटवारा घर का रुक जाता ,बापू कुछ ऐसा कर जाते ।।3

 

अधिकांश कांग्रेस खेमों ने, मुखिया पटेल को माना था ।

नेहरू को गद्दी देने का , क्यों योग आपने ठाना था ।

जिन्ना को धन बटवारे का ,उदघोष आपका था बापू ।

इतिहास बताता “हलधर”को,ये दोष आपका था बापू ।

नकली जिद को छोड़े होते ,धरना देते या मर जाते ।।

बटवारा घर का रुक जाता ,बापू कुछ ऐसा कर जाते ।।4

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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