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पंजाबी साहित्य में डॉ.अमरजीत कौंके एक विलक्षण प्रतिभा – जसप्रीत कौर

neerajtimes.com – डॉ.अमरजीत कौंके  पंजाबी साहित्य के आकाश पर ध्रुव तारे की तरह चमकता हुआ नाम है जिसकी रोशनी में पंजाबी साहित्य मालामाल हुआ है। उनकी रचनाएँ प्रेम के सरोकारों को नए दृष्टिकोण से परिभाषित करती हैं। उनकी कविता की विशेषता  है कि यह पाठक से बड़ी ख़ामोशी से हम – कलाम होते  हुए उसकी रूह में उतर जाती है । पंजाबी भाषा में उनका विशेष पाठक वर्ग है। उनकी इन चुनिंदा पंजाबी कविताओं का अनुवाद हिंदी पाठकों को भी अनुभूति करेगा। उनके पास लेखन प्रक्रिया का जो अनुभव है उनकी रचनाओं में वो स्पष्ट देखा जा सकता है। साहित्य समाज का दर्पण होता है उनकी कविताएँ भी इस यथार्थ को सार्थक करती हैं- यह भावपूर्ण रचनायें संकलन में संकलित कर के गौरवान्वित हूँ।

1 – पहला प्यार नहीं लौटता

पंछी उड़ते

जाते हैं दूर दिशाओं में

लौट आते हैं

आखिर शाम ढलने पर

फिर अपने

घोंसलों में

 

गाड़ियाँ जातीं

लौट आतीं

स्टेशनों पर

लंबी सीटी बजातीं

 

ऋतुएँ जातीं

फिर लौट आतीं

दिन चढ़ता

छिपता

फिर चढ़ता

 

बर्फ पिघलती

नदियों में जल बहता

समुद्रों से पानी

भाप बनकर उड़ता

बादल बनता

फिर पहाड़ों की

चोटियों पर

बर्फ बनकर चमकता

उड़ती आत्मा

अन्तरिक्ष में भटकती

फिर किसी शरीर में

प्रवेश करती

 

सब कुछ जाता

सब कुछ लौट आता

 

नहीं लौटता

इस ब्रह्मांड में

तो सिर्फ़

पहला प्यार नहीं लौटता

 

एक बार खो जाता

तो मनुष्य

जन्मों जन्म

कितने जन्म

उसके लिए

भटकता रहता…..।

2 – तब पूरी होगी दुनिया

मेरे बिना

अधूरी है दुनिया तेरी

 

तेरे हाथों में फूल हैं

माथे पर सूरज

तेरे सिर पर मुकुट है

तेरे पैरों के नीचे

सारी दुनिया की दौलत

तेरे चेहरे पर

चाँदनी नृत्य करती है

तेरे बालों में

सतरंगी चमकती हैं

पर तेरी आँखों में

भरे बादलों की

उदासी कहती है

कि मेरे बिना

अधूरी है दुनिया तेरी

 

पास कायनात है

भले ही मेरे भी

मेरे पोरों में थरथराते शब्द

होंठों पर महकता संगीत

मेरी भी आँखों में

कितनी धूप चमकती है

कितनी हवाएँ

चीर कर गुज़रती हैं मुझे

कितने समन्दर मेरे पैरों को

छू कर गुज़रते हैं

 

पर मेरे शब्दों से उदित होता

उदास संगीत बताता है

कि तेरे बिना

अधूरी है दुनिया मेरी

 

हम आदि-अनंत से

एक दूसरे बिना अधूरे

धरती ग्रहों-नक्षत्रों की तरह

घूमते एक दूसरे के लिए

एक होने के लिए

तरस रहे हैं

 

हम

जो अधूरे हैं

एक दूसरे बिना

 

हम मिलेंगे

तब पूरी होगी

दुनिया हमारी।

3 – बचपन – उम्र

स्कूल के एक कोने में

कुर्सी पर बैठा

आधी छुट्टी में

छोटे छोटे बच्चे भागते

देख रहा हूँ

 

नाचते कूदते

भागते दौड़ते

एक दूसरे को पकड़ते

फिर एक दूसरे से लड़ते

भगवान जैसे चेहरे इनके

बेफिक्र दुनियादारी से

अपनी अजब सी

दुनिया में

घूम रहे हैं

 

इनको देखकर

अचानक मैं

अपने अंदर खो जाऊं

छोटी उम्र वाले

भोले बचपन का

द्वार खटखटाऊं

 

पर मेरा बचपन

जैसे कोई काँटों वाली झाड़ी

जहां कहीं भी हाथ लगाऊं

काँटे ही काँटे

 

काँटों से

मासूम जैसे पत्ते बिंधते जाते

बचपन जैसे कोई डरावनी चीज़

डरते डरते लौट आऊं

सामने खेलते

नाचते कूदते

बच्चों को देखूं

 

पर मुझे कहीं भी

ऐसा बचपन मेरा

याद ना आए

बचपन की कोई याद मीठी

मेरे मन की तस्वीर पर

बन ना पाए

मेरा बचपन

जैसे कोई डरावनी चीज़

 

और लोग कहते हैं

कि बचपन की ये उम्रा

फिर कभी ना आए…..

4 – बस के सफर में

बस के सफर में

मेरे से अगली सीट पर

बैठी हुई थी एक औरत

साथ पति उसका

गोद में बच्चा खेलता

छोटा सा

ममता के साथ भरी वह औरत

उस छोटे से बच्चे को

बार-बार चूम रही थी

 

मासूम उसके चेहरे से

छुआ रही थी ठोड़ी अपनी

उसके अंदर से उभर रही थी

भरी-भरी ममता

उभर रहा था उसके अंदर से

ममता का प्यार

 

मेरे मन में

युगों-युगों से दबी हुई

जगी हसरत

मेरे मन में सदियों से सोया

आया ख़याल

काश कि इस औरत की

गोद में लेटा

छोटा सा बच्चा मैं होता

 

काश कि यह औरत

मेरी माँ होती।

मूल पंजाबी कविता- अमरजीत कौंके

अनुवादक- डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक, लुधियाना , पंजाब

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