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हरियाणा के लोक गीतों में राखी – डॉ. रामसिंह यादव

neerajtimes.com – राखी का सूत्र वस्तुत: मनुष्य के सामाजिक कल्याण का सूत्र है। यह तथ्य हरियाणा के लोक गीतों में कई तरह से मुखरित हुआ है। अत: प्रस्तुत है :

ओ पिया आई सूं बाप मेरे के बाग

कोयल सबद सुणाइया।

ओ पिया आई सूं बाप मेरे की बाणी

बणी झगारे मोरणे।

ओ पिया आई सूं मेरे के गौरे

गौरे गऊवै छाईयां।

बहन-भाई के अभिन्न प्रेम का उपमान संसार में नहीं है। भाई के ऊपर बहन को गर्व होता है। जब भी कोई भार अथवा आपत्ति आती है, भाई का आश्रय उसे मिल जाता है। निम्न गीत देखिये, जिसमें बहन, भाई के समक्ष इन्द्र को ललकारती हुई कह रही है-

बागों में मेहा बरसे

सखर पै मेहा बरसै।

मत बरसै इन्दर राजा

मेरी माका जाया बरसै।

मालाम्पै रंग बरसै

चम्पा पै रंग बरसै।

मत बरसै इन्दर राजा

थाली में वीरा बरसै।

भाई के बरसने में कैसी सुन्दर व्यंजना है। उसका भाई भात नौतने के बाद उसके आमंत्रण पर आता है। उसकी खुशी का पारावार नहीं रहता। तभी तो वह कहती है- ‘हे इन्द्र! आज इधर-उधर बरस लो। हमारे यहां तो मेरा भाई बरस रहा है।‘ सावन का मास आते ही बहू-बेटियों और ललनाओं को अपने पीहर की याद आती है। उदाहरण प्रस्तुत है-

आया री सासड़ सावन मास,

बेड़ बटा दे री पीला पाट की

पटड़ी घड़ा दे री चंदर रूख की

आया री सासड़ सावन मास,

हमने खंदा दे री म्हारे बाप के॥

सावन के महीने में ही रक्षा बंधन का त्यौहार आता है। बहनें, भाइयों के यहां समाहत होती हैं। माता-पिता अपनी पुत्रियों को अपने पास बुलाकर सुख अनुभव करते हैं। एक गीत में पीहर और सासरे की तुलना हरियानवी बालिका अपने मुख से कर रही है।  गीत सावन की मल्हारी का है-

हरी ये जरी की है मां मेरी चुंदड़ी जी,

है जी कोई दे भेजी मेरी मांय,

बैठूं तो बाजे है मां मेरी चुंदड़ी जी,

ए जी कोई प्यारे मायड के बोल,

पीहर में बेटी है मां मेरी न्यूं रह जी,

ए जी कोई कोई ज्यूं घिलड़ी बीच घी,

इन्द्र राजा ने झड़ी ए लगा दई जी।

(रक्षा सूत्र में गुंथे स्नेह के ये संस्कार पुरुषों में नारी जाति के प्रति एक पवित्र स्नेह की बुनियाद बन जाते हैं)।

(दूसरा पक्ष इस प्रकार है)

सासड़ ने भेजी है मां मेरी चुंदड़ी जी,

ए जी कोई दे भेजी मेरी सास

ए जी बीच सासड़ के बोल

सासरे में बेटी है मां मेरी

न्यूं रझे जी

ए जी कोई ज्यूं रे कढ़ाई बीच तेल

इन्द्र राजा ने झड़ी ए लगा दई जी।

इसी मास में बालिकाएं अपने नेहर में तीज अथवा हरियाली तीज मनाती हैं। प्रत्येक कन्या अपने पीहर में रहती है। जो नहीं जा पातीं उन्हें सिंघारा भेजा जाता है। एक ऐसे ही लोकगीत में भाई अपने स्नेहातुर कलावती बहिन के यहां सिंघारे की कोथली लेकर जाता है। बहन बड़ी दुर्बल है, भाई कारण पूछता है-

मिट्ठी तो कर देरी मोस्मो कोथली

सामण री आया गूंजता।

किसीयां के दु:ख में बेव्वे दूबली

किसीयां ने बोल्ले से बोल,

सामण आया गूंजता।

हे बहिन! श्रावण मास तो हंसी-खुशी और उल्लास का है। किसके दु:ख में तू निर्बल है और किसने तुझे कुछ कहा है। इस पर बहन अपने मां के जाये को बताती है-

सासड़ के दु:ख में दूबली

नणदी ने बोल्ले सै बोल।

सास द्वारा दिये जाने वाली यातनाओं से वह दु:खी है और ननद के बोल उसे कसकते रहते हैं। इसलिए दुबली है। भाई तत्काल ही उपाय बतलाता है-

नणदी ने भेजांगा सासरे

सास्सु ने चक लेगा राम।

ऐसे तो नारी का अपने माता-पिता और अन्य आत्मीयजनों से भी मोह रहता है, किन्तु भाई के प्रति अनुराग की विशेष प्रबलता रहती है जिसके कई कारण हैं। पहला तो यह कि भोली यादगारें और निकटता उनके संबंध को गहरा बना देती हैं। दूसरा कारण यह है कि माता-पिता के बाद भाई ही नैहर में बहन के स्नेह का अवलम्ब बनता है। जहां ससुराल के कटुता मय वातावरण, सास की फटकार, जेठानी-देवरानी की तानेबाजी और ननद के नखरों से घबराकर वह कुछ समय शांति की सांस ले सके और हंसी-खुशी के चार दिन व्यतीत कर सके। गीत की बानगी देखिये जिसमें बहिन अपने भाई की प्रतीक्षा में पलकें बिछाए है और वह लेने नहीं आता है तब वह दिन-प्रतिदिन घर की मुंडेर पर बैठकर कांव-कांव करने वाले कौआ से अपना संदेश भिजवाती है-

उड़ जा रे कागा ले जा रे तागा,

जांदा तो जइये मेरा बाप के।

भुरट भुआऊं रे कागा डस रोऊं

रोऊं रे नव्वा तेरा जीवने।।

अर्थात ऐ भाई कौआ मेरे तागा (धागा) को ले जाकर मेरे पिता को पहुंचा दे, मैं इस बागड़ देश में भुरट घास को बुहारती हूं और याद करके रोती हूं। भाई  को लिवा ले जाने के लिए वह जल्दी भेजे। इस प्रकार स्पष्ट है कि राखी का धागा वस्तुत: मनुष्य के सामाजिक कल्याण का सूत्र है। रक्षा बंधन का पुनीत पर्व कितने ही रुठे हुए भाई-बहनों को मनाते हुए नवीन संबंध स्थापित करता है तथा इन संबंधों को स्थिर बनाता है। (विनायक फीचर्स)

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