ये इश्क मुहोब्बत भी जमता है किताबों से,
परवान ये चढ़ता है आँखो के इशारों से।
करता है वो महनत भी,बोता है फसल भी वो,
घुटता सा वो रहता है आड़त के हिसाबों से।
डूबी हूँ तेरी मस्ती में,महकी फिजायें भी,
मिलती हे हमें खुशबू तेरे ही फूलों से।
पायी थी बड़ी शोहरत दुनिया की किताबों से,
धोखा खा गया ,किस्मत की चंद लकीरो से।
मर जायेगे गर हम तो,खोजेगी निगाहें भी,
मिलती है ये चाहत भी,हमको तो नसीबों से।
हिम्मत से ही *ऋतु ने की अब बहुत पढाई है,
ये सब मिला है ऋतु को अपने ही इरादों से।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़