गैर नही है खास बहुत है ,दूर नही है पास बहुत है ।
उसके तीखे व्यंग बोल में ,हास नही परिहास बहुत है ।।
दिल में आग लगा देती हैं ,उसकी खट्टी मीठी बातें ।
खुले घाव में नमक लगाती ,उसकी मरहम सी सौगातें ।
लेकिन मुझको अपने पथ पर ,आश नही विस्वास बहुत है ।।1
जिसको बड़ा सदा माना है ,मान दिया मेरी लघुता ने ।
सही समय पर करी आरती ,शब्द शब्द मेरी कविता ने ।
मुझको सच्चे आशीषों की ,भूख नही है प्यास बहुत है ।।2
जीवन ही नीलाम कर दिया ,अदब सीखने की आशा में ।
जैसे चातक तप करता हो ,एक बूंद की अभिलाषा में ।
जगह मिली ना मन मंदिर में,इतना ही वनवास बहुत है ।।3
अपने दम पर बढ़ता आया ,मैं हूँ कविता का अनुरागी ।
सुविधा सिद्ध नही होती है, होता सिद्ध सदा बैरागी ।
भावों का भूगोल बड़ा है ,कविता में इतिहास बहुत है ।।4
आँख खोल देखा अब मैंने ,अपनी खुद ही नादानी को ।
सरिता का जल मान रहा था ,ताल भरे ठहरे पानी को ।
सत्य तथ्य पहचानो “हलधर”,उड़ने को आकाश बहुत है ।।5
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून