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सावन गीत (दंडक छंद) – कविता बिष्ट

पावस में नाच मोर, घन-घन -घन घटा शोर, ललित ललाम है भोर, सुखद जगत सारा।

नदियाँ रजनीश तीर, लगे है तंदुल क्षीर, लगे कभी नहीं भीर, निर्मल है धारा।।

शजर देख रहे व्योम, पुलकित है रोम-रोम, कलियाँ हैं कोम- कोम, सावन है आया।

पवन करें रोज शोर,बदरा है घनाघोर, कहाँ गया चित्तचोर, पावस है भाया।।

 

हुई बारिश बौछार,बना  इंद्रधनुष हार , प्रीत लगन है अपार, सरस बरसात है।

हरे-भरे शजर खिले, हरियाली मनुज मिले,  होंठ हैं उनके सिले, नित खुशी बात है।

मैं मगन-मस्त बहार, गले हरित विटप हार, नित कलियों को निहार , घूम-घूम आये।

बदरा बहके है आज, मंद-मंद सजी साज, चंचल मन छिपा राज, झूम-झूम गाये।।

 

हरियाली चहुँ ओर, विहग करें कही शोर, हुई देख सुखद भोर, त्यौहार बताते।

नदियाँ में नाव बहें, रिमझिम बरसात कहें, सुख- दुख सब नदी सहे, श्रृंगार सजाते।।

नार बहुत खूब सजे, सभी मनुज किए मजे,सभी दर्द यहीं तजे, हम-तुम मिल जाते।

नयन प्रीत नयन मिले, चमन सुमन अमन खिले,  अभी नहीं हुए गिले,सुख-दुख हम पाते।

~कविता बिष्ट ‘नेह’, देहरादून , उत्तराखंड

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