पावस में नाच मोर, घन-घन -घन घटा शोर, ललित ललाम है भोर, सुखद जगत सारा।
नदियाँ रजनीश तीर, लगे है तंदुल क्षीर, लगे कभी नहीं भीर, निर्मल है धारा।।
शजर देख रहे व्योम, पुलकित है रोम-रोम, कलियाँ हैं कोम- कोम, सावन है आया।
पवन करें रोज शोर,बदरा है घनाघोर, कहाँ गया चित्तचोर, पावस है भाया।।
हुई बारिश बौछार,बना इंद्रधनुष हार , प्रीत लगन है अपार, सरस बरसात है।
हरे-भरे शजर खिले, हरियाली मनुज मिले, होंठ हैं उनके सिले, नित खुशी बात है।
मैं मगन-मस्त बहार, गले हरित विटप हार, नित कलियों को निहार , घूम-घूम आये।
बदरा बहके है आज, मंद-मंद सजी साज, चंचल मन छिपा राज, झूम-झूम गाये।।
हरियाली चहुँ ओर, विहग करें कही शोर, हुई देख सुखद भोर, त्यौहार बताते।
नदियाँ में नाव बहें, रिमझिम बरसात कहें, सुख- दुख सब नदी सहे, श्रृंगार सजाते।।
नार बहुत खूब सजे, सभी मनुज किए मजे,सभी दर्द यहीं तजे, हम-तुम मिल जाते।
नयन प्रीत नयन मिले, चमन सुमन अमन खिले, अभी नहीं हुए गिले,सुख-दुख हम पाते।
~कविता बिष्ट ‘नेह’, देहरादून , उत्तराखंड