हर परिंदा देर तक उड़ता नहीं है.
चुक गया जो वक्त, फिर मुड़ता नहीं है।
टूट जाता है अगर कुछ भी कभी तो,
फिर दुबारा उस तरह जुड़ता नहीं है।.
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बांधते दिल, कि दिल के दरीचे नयन.
जीतना जग कहां से हैं सीखे नयन।
शंख या कि कमल, तीर – तलवार से,
क्या बताएं कि किसके सरीखे नयन।
– यशोदा नैलवाल, दिल्ली