प्राण वायु की कमी न होती, पीपल सम फेरे होते।
सावन को अपनाता मन यदि, हृद से तुम मेरे होते ।
घर आँगन की जिम्मेदारी, में यदि प्रेम मिला होता।
परिणीता का गहना धीरज, क्यों अपने घर में खोता।
संबंधों में अपनेपन बिन, भाव नहीं चेरे होते…… ।
धन अर्जन आधार सदन में, वर्ग भेद उपजाता है।
सत्य यही हर गृह वासी का, होता श्रम से नाता है।
दमन जहाँ अधिकारों का हो, वहीं कपट डेरे होते….. ।
जीवन पथ के पहिये सम हों, उन्नति पथ तब गहता है।
समय चक्र के व्यवधानों को, वह खिलवाड़ समझता है।
त्याग समर्पण से ही पैदा, आशा के घेरे होते…… ।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश