मनोरंजन

गीत – मधु शुक्ला

प्राण वायु की कमी न होती, पीपल सम फेरे होते।

सावन को अपनाता मन यदि, हृद से तुम मेरे होते ।

 

घर आँगन की जिम्मेदारी, में यदि प्रेम मिला होता।

परिणीता का गहना धीरज, क्यों अपने घर में खोता।

संबंधों में अपनेपन बिन, भाव नहीं चेरे होते…… ।

 

धन अर्जन आधार सदन में, वर्ग भेद उपजाता है।

सत्य यही हर गृह वासी का, होता श्रम से नाता है।

दमन जहाँ अधिकारों का हो, वहीं कपट डेरे होते….. ।

 

जीवन पथ के पहिये सम हों, उन्नति पथ तब गहता है।

समय चक्र के व्यवधानों को, वह खिलवाड़ समझता है।

त्याग समर्पण से ही पैदा, आशा के घेरे होते…… ।

— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश

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