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गीतिका छंद – अर्चना लाल

दीप अंतस का जलाना, तब मिटेगा तम घना।

द्वार तोरण से सजाना , मोतियों को लड़ बना ।।

मोह ऐसा हृद जगाना  , प्रीत में मैं बस  रहूँ ।

तार दिल का यूँ मिलाना, साँवरे तुझको कहूँ ।।

 

नैन मेरे बस तुझे ही , ढूंढते है साँवरे ।

बाँसुरी की तान सुनकर,थम रहे है पाँव रे।।

थाम लेती हूँ हृदय को , सोच कर जग का भला।

तुम जुदा होते कहाँ हो, लग गई कैसी बला ।।

 

नेह दिल में है जगा अब , सुन जरा मन मोहना।

रूप तेरा है सलोना , उर बहुत है सोहना ।।

रास आती हैं नहीं अब ,तुम बिना यह जिंदगी।

भाव मेरे आज सारे ,कर रहे हैं बंदगी ।।

 

है सुहानी शाम देखो ,  हाथ मेरा  थाम लो ।

शब्द मधुरिम बोल कर बस, तुम हमारा नाम लो।।

लिख रही हूँ गीत अनुपम, है मधुर यह प्रीत की ।

जग कहेगा आज हमको,  ‘अर्चना’ है मीत की ।।

– अर्चना लाल , जमशेदपुर, झारखण्ड

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