अंबर ने भेजा बादल को
अंक में भर ले अवनि को,
भरकर बाहों में धरती को
देखो मेघ के नेह को।
निक्षण का फिर ढेर लगाया
बिखरी निखरी सी वसुधा,
आकर बाहों में बादल के
देखो पिघलती अवनि को।
पीतांबर सी हुयी है धरा
वासंती सा परिवेश है,
चकित विस्मित बादल भी हुआ
देख धरती के रूप को।
छाया है कोहरा ये घना
छिप छिप करले प्रेम जरा,
प्राची से सूरज का आना,
बाधित न कर दे प्रीत को।
– सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर