गमों को छोड़, जमाने मे सब नही मिलता,
पुकार लो जो भी दिल से, वो कब नही मिलता।
खुदा की ये है दुआ,प्यार तुम पे आया है,
भले करीब है फिर भी अदब नही मिलता।
कहर करे है वो हरदम, दया नही करते,
तभी तो मेरी जरूरत पे रब नही मिलता।
भले किया है गिला यार आज भी तुमसे,
जमाने मे रिश्ता-ए-खूँ भी अब नही मिलता।
उलझ रही थी मैं दुनिया के मोह माया मे,
मिले सुकूँ हमे भी अब सबब नही मिलता।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़