मनोरंजन

इश्क़ प्रिये – सविता सिंह

neerajtimes.com – प्रेम में पड़ी हुई परिपक्व स्त्रियाँ भी सोलह वर्षीय कमसिन बाला की तरह चंचल हो जाती हैं।

वह अपने प्रियवर के सामने इतराती है,चहकती हैं, बहकती हैं, सब कुछ भूल, अल्हड़ नदी सी बहना चाहती हैं।

अपने बेहद चाहने वाले मे विलुप्त होना चाहती हैं, सरस्वती नदी की भांति, किंतु अपने अस्तित्व और मर्यादा के संग।

कभी झाँकना किसी परिपक्व प्रेम में पड़ी स्त्री की सीप सी आँखों में, मोती बना देंगी तुम्हें, डूब जाओगे देखना उन आँखों में।

वह दिखाएंगी नहीं कि तुमने उसके दिल में कब घर बना लिया। उनके चेहरे पर स्वतः एक चंचलता आ जाती है। बिना बात के वो मुस्कुराती नजर आती है। और उसकी मुस्कुराहट की वजह तुम होते हो।

उसके अल्हड़पन को उसके बहाव को रोकना मत समा लेना उसे।

कभी बेहद करीब जाकर सुनना उसकी धड़कनों को तुम खुद मंत्र मुग्द्ध ना हो गए तो देखना।

कभी बलखाती झुमको को उसके गालों से हटा देना।

करीने से समेटी हुई बालों को धीरे से खोल देना।

और फिर पढ़ना उसके चेहरे की भाव भंगीमा उसके हाव भाव। उसकी ही आंखों से काजल निकाल उसे ही लगा देना ये कहना तुम्हें अपनी नजर से बचा रहा हूँ। कहना कभी तुम्हारी आंखों की काजल जान ले लेगी  एक दिन। बस ऐसे ही छोटी मोटी खुशियों की वह चाह रखती है अपने दिल में। ऐसा ही इश्क करना तुम उससे। तो ठीक है। – सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर

Related posts

ध्वनि प्रदूषण ( मुक्तक) — कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

newsadmin

ग़ज़ल – विनोद निराश

newsadmin

जरूरत ही तुझे क्या थी – अनुराधा पाण्डेय

newsadmin

Leave a Comment