जन्मता अनुराग पावन हर्ष पाने के लिए,
राष्ट्र, घर, संसार को सुंदर बनाने के लिए।
भावनाएं प्रीति कीं पतझड़ नहीं लातीं कभी,
मीत सच्चे पास आते हैं हँसाने के लिए।
लोकहित की कामना से जो जुड़ा संसार में,
वह रहे तत्पर खुशी अपनी लुटाने के लिए।
धर्म के अस्तित्व से हम हो गये अनभिज्ञ क्यों,
यह बना सद्भावना जन में जगाने के लिए।
क्यों हमारे उर समाई ईश ने करुणा, दया,
‘मधु’ सुमन अपनत्व से जग को सजाने के लिए।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश