वेदना को शिरोधार्य करके प्रिये!
रात मेरी तुम्हारे बिना कट गयी ।
प्रेम साम्राज्य था राग मंडित निलय ,
रश्मियों से भरा काम्य रनिवास था ।
तुम गये तो विकल सांस हवि बन गई,
प्राण तो शेष था किन्तु वनवास था ।
मौन क्रंदन अहो ! कंठ में घुट गया….
वेदना धार से चेतना पट गई ।
रात मेरी तुम्हारे, बिना कट गयी….
कुछ दिवस नींद जब नैन से दूर थी ,
सौ उपालंभ मैंने तुम्हें दे दिये ।
और उनको लिखे पृष्ठ पर अनवरत,
कोटि उपमान मैंने रचे, से लिये ।
प्रेम ने जो गढ़े पूर्व में राग रस….
नाम उनको दिये औ उन्हें रट गई ।
रात मेरी तुम्हारे बिना कट गयी…..
– अनुराधा पांडेय, द्वारिका , दिल्ली