धूप के डेरे उठे अब दून से ,
डोलियां बरसात की आने लगी।
अब पपीहा को मिला है चैन कुछ ,
और कोयल रागिनी गाने लगी ।।
चल पड़ी देखो हवायें सिंधु से ,
शुष्क मौसम अब रसीला हो गया ।
मेघ नगपति शीश टकराने लगे ,
चोटियों का गात गीला हो गया ।
रंग धरती का हरा होने लगा ,
आसमां में नित घटा छाने लगी ।
धूप के डेरे उठे अब दून से ,
डोलियां बरसात की आने लगी ।।
रूप बदले बादलों का कारवां ,
आह क्या छायी अनौखी सी छटा ।
चाँद तारों से मिचौली खेलती ,
घूमती चित चोर सी चंचल घटा ।
फिर सुबह रवि को ढकेंगी देखना ,
सिंधु से जल भर यहां लाने लगी ।
धूप के डेरे उठे अब दून से ,
डोलियां बरसात की आने लगी ।।
जून में जो रो रहे थे आज वो,
दूब के सूखे तने हँसने लगे ।
जो पलायन कर गए थे जून में ,
वो परिंदे वापसी बसने लगे ।
लेखिनी ‘हलधर’ जगी कहने लगी ,
बादलों का नेह भू पाने लगी ।
धूप के डेरे उठे अब दून से,
डोलियां बरसात की आने लगी ।।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून