मनोरंजन

गीतिका – मधु शुक्ला

समय, श्रम और धन जैसी बचत जल हम करेंगे कब,

विटप बिन घन नहीं आते उभरता स्वर सुनेंगे कब ।

 

सतत बढ़ती हुई गर्मी हमें संकेत जो देती,

भुला कर व्यस्तता उसको न जाने हम पढ़ेंगे कब ।

 

प्रणाली नित्य शिक्षा की युवा को दे रही पीड़ा,

हमारा लुट रहा कल हम लुटेरों से बचेंगे कब।

 

हमारी बेटियों का किस प्रलोभन से जुड़ा नाता,

हृदय की बात सुनने को हृदय उनका गहेंगे कब।

 

नमक खाकर हमारा जो निभायें मित्रता अरि से,

वतन के हेतु घातक हैं कुटिल ऐसे मिटेंगे कब।

— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश

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