मैं अछूत का
पेड़ हूं,
मुझे काटा
जा रहा है,
जातियों की
तरह मुझे भी
बांटा जा रहा है,
मैं वही अछूत का
पेड़ हूं जिससे
चलती है सांसें
इस संसार की,
पर कोई भी
मुझे समझता
नहीं, कोई अपने
आंगन से
निकालता है,
तो कोई मुझसे
सोतेला व्यवहार
करता है,
तो कोई मेरा
कत्ल कर विकास
के गुणगान कर
रहा है,
जैसे दुषित कर
दिया हो रास्ता
इंसानों का मैंने
अछूत बनकर।
– दीपक राही, आर०एस०पुरा०,जम्मू कश्मीर