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पिता दिवस (व्यंग्य आलेख) – सुधीर श्रीवास्तव

neerajtimes.com – आप सभी को पिता दिवस पर बधाइयों की औपचारिकता निभाने की परंपरागत श्रृंखला को आगे बढ़ा कर अहसान कर रहा हूं। शराफत से मेरा एहसान मानिए।भले ही पिता दिवस पर पिताओं के लिए बेमन से निकल रहे भावों को विराम दे दीजिए।

वैसे भी हम पिता दिवस मना कर कौन सा झंडे गाड़ रहे हैं। कितने दिवस हम हर साल मनाते हैं, पर मजाल है कि किसी भी एक दिवस की सार्थकता एक कदम भी आगे बढ़ी हो। मगर इसमें हमारा आपका तनिक भी दोष नहीं है। दिवस मनाने की सार्थकता ही तभी है, जब दिवस पर हम कुछ चीख चिल्ला सकें। गोष्ठियां, सेमिनार कर सकें। सोशल मीडिया, पत्र पत्रिकाओं में अपनी बात बेमन से ही मगर खुलकर रख सकें।

तो आइए! पिता जी को नमन करें। उनका गुणगान करते हुए उनकी शान में कसीदे पढ़ें। वृद्धाश्रमों में जाकर फल, फूल, मिठाई, वस्त्र वितरित करें। सोशल मीडिया, अखबारों, न्यूज़ चैनलों में स्थान ही नहीं चर्चा भी प्राप्त करें।

यह अलग बात है कि आज के दिन भी हमारे अपने पिता के लिए हमारे पास समय कहां है। रोज रोज पिता की नसीहतें तंग करती है। बुढ़ापे में सेवा, बीमारी, दवाई और देखभाल मुझे तो समझ नहीं आती। बुड्ढा मरता भी नहीं,कि सूकून मिले। जाने किस मिट्टी का बना है कि कुंडली मारकर धन संपत्ति पर कब्जा किए हैं। मर जाय तो कम से कम धूमधाम से काम क्रिया निपटा देते, बड़ी सी फोटो पर फूल माला हजारों लोगों से चढ़ाकर श्रद्धांजलि दिलवा देते। फिर हर साल पितृ दिवस की औपचारिकता अच्छे से निभा पाते।

अब भला ये तो कोई बात नहीं हुई कि हमें तो रोज ही पितृ दिवस मनाना पड़ता है। बीबी अलग नखरे दिखाती है। बच्चों की शिकायतों का अंत नहीं है। पितृ भक्त श्रवण कुमार बनने से भला लाभ क्या है? ये कलयुग है भाया। सब बेकार है। चाहे जितना करेंगे, बदनाम तो रहेंगे ही, फिर ऐसी सेवा का क्या लाभ है? फिर बड़ा सवाल क्या पिता जी ने अपने पिता जी की और उन्होंने अपने पिता जी का उतना ही मान सम्मान सेवा सुश्रुषा , आज्ञा पालन किया भी था,या अपना भौकाल बना हमारी चमड़ी नोचने पर आमादा है। वैसे भी इन पिताओं को कोई तो समझाओ कि अब उनका समय बीत गया, हमें परेशान न करें और चुपचाप वृद्धाश्रम निकल जायें। हम भी ख़ुश,वो भी खुश। रोज रोज की चक चक से भी छुटकारा। ऊपर एक जो सबसे बड़ा फायदा हम सबको हो सकता है, वो ये कि पिता दिवस मनाना आसान हो जायेगा, जाने अंजाने जाने कितने पिताओं को कम से कम फल, फूल,मेवा, मिष्ठान और वस्त्र कम से कम पिता दिवस के नाम पर मिल जायेगा। हमारा भी केवल एक दिन व्यर्थ जाएगा।

आइए! सब मिलकर पिता दिवस मनाते हैं, अपने अपने पिताओं को वृद्धाश्रम पहुंचाते हैं, वहीं पिता दिवस मनाते हैं, अपने ही नहीं औरों के भी पिताओं के साथ फोटो खिंचवाते हैं और फेसबुक पर डालते हैं। पिता दिवस तो सदियों तक मनाया ही जाता रहेगा, तो हम भी कुछ नया करते हैं अपनी अगली पीढ़ी के लिए मिसाल बनते हैं, अपने लिए वृद्धाश्रम में अग्रिम जगह तैयार करते हैं।

पिता दिवस जिंदाबाद। पिता हैं तो जिंदा, नहीं हैं तो बाद। हो गया जिंदाबाद। सभी पिताओं को औपचारिक नमन। भले ही हम न दे सकें कफ़न। पर हर साल और अच्छे से मना सकें पिता दिवस और खिंचवा सकें पिता के चरण पकड़कर फोटो। सार्थक कर सकें पिता दिवस, क्योंकि हमें भी पता है,हम भले ही थोड़ा बहुत शर्म भी कर लें, पर हमारी औलादें तो बेशर्मी से ऐसे ही मनायेंगी पिता दिवस।  – सुधीर श्रीवास्तव, गोण्डा उत्तर प्रदेश

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