( 1 ) हुआ
पत्थर जब दिल ही
तो, हो गए खामोश ज़ज़्बात सारे !
अब किसकी सुनें या चलें मानें यहाँ पे…,
जब तन मन में हो छाई उदासी के पहरे !!
( 2 ) घड़ी
विकट है जीवन की
और हुए बेगाने सभी अपने !
अब किसी टूटे हुए दिल से क्या कहें….,
जब खुदके ही दिल पे पड़ें हों गम के ताले !!
( 3 ) सूख
गई सदविचारों की नदिया
और हुयी यहाँ पे ज़िन्दगी बेमानी !
जी रहें सभी विषाद और कुंठाओं में….,
चहुँ ओर पड़ी दिखती नैराश्य की परत गहरी !!
( 4 ) पत्थर
की दीवारों में रहते
हुए सभी के दिल पत्थर जैसे !
अब कहाँ मिलते जुलते लोग यहाँ पे…,
और कहाँ बाँटते सुख-दुःख गम दर्द आपस में !!
( 5 ) खामोश
पड़े हैं सभी आशियाने
अब परिंदे भी यहाँ पे नहीं आते !
जब पड़ गए हों पत्थर ही दिल पे….,
तो, कौन आकर गुलशन को गुलज़ार करे !!
सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान