करती हूँ जिससे मैं अपने मन की बातें,
है वो एक रफ कॉपी और ढेर सारी किताबे।
रफ कॉपी के पन्नों पर दिखता अतीत,
जी लेते हैं उन क्षणों को समय हो जाता व्यतित।
मेरी मन की जितनी है बातें सब उसमें गिरफ्तार,
समय-समय पर करती हूँ खुद से ही साक्षात्कार।
कई वर्षों से वह तो है मेरी सच्ची सहेली,
सुलझा देती है वह पल में मेरी अनबुझ पहेली।
इतनी सारी रातें मेरी बीती है उसके साथ,
रखती है वो स्वयं तक मेरी वो सारी बात।
मेरे मन की बातों में कुछ का है मुख्य किरदार,
कलम और रेनॉल्ड पेन जिससे मुझको है प्यार।
करती नहीं तुम मुझसे कभी भी कोई दिखावा,
तुझ पर है अटूट विश्वास ना करेगी तू छलावा।
– सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर