मनोरंजन

दोहे – प्रियदर्शिनी पुष्पा

बिखरी है ये जिंदगी, बिखरी जीवन डोर।

आशंकाओं में हृदय, पार न पाए ओर।।

बीच भॅंवर में है फॅंसी , नैया की पतवार।

पता नहीं किस ओर है, इस नदिया की धार।।

मौन-मौन मन साधता, मौन पीर संश्लिष्ट।

क्षण-क्षण प्रति-प्रति पग हुआ, दुष्कर बोझिल क्लिष्ट।।

हर्ष-वेदना मध्य में , झीनी-सी दीवार।

ग़लती से यदि भेद दें, हो असह्य वह मार।।

रूठ गये दिन वे सभी , करता हर्ष विहार।

अब खुशियों के दृग भरा, ऑंसू अपरंपार।।

दिव किंचित् ही मात्र तो, उत्तर ज्ञात विशेष्य।

संघर्षों को जीतना , शेष एक उद्देश्य।।

– प्रियदर्शिनी पुष्पा, जमशेदपुर

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