यह जीवन संघर्षों से भरा , कभी झूठ कभी खरा,
सफल हो ना सका कभी वो , जो इससे डरा।
कुछ का संघर्ष सिर पर छत, दो रोटी और लंगोटी का ,
कुछ का ज़मीन से उठकर जाने पर्वत की चोटी का।
कोई मनोविकारों से संघर्षरत ,कोई अपनों से ही पस्त,
किसी का संघर्ष अनोखा तो किसी का ज़बरदस्त।
संघर्ष को कहां ,कब और किसने नहीं जीया,
कहीं दिखा, पर कुछ ने खून का घूंट चुपचाप पिया।
मेरा अंतर्मन भी संघर्षों से भरा था जीते जी मरा था,
दुविधा ,द्वंद ,क्रोध , विवशता से मैंने भी लड़ा था ।
पर संघर्ष की आंच ही है जो बनाती स्वर्ण को कुंदन,
जैसे विषधरों से लिपटकर भी, महक दे वृक्ष चंदन।
परिस्थितियों से जीतने की, वो प्रेरणा , गहराई व भाव,
हृदय को संघर्ष ही दे सकता है,यही है इसका प्रभाव।
– प्रीति यादव, इंदौर , मध्य प्रदेश