जहां माननीय मजे ले रहे,
जनता मंहगाई से हो बेहाल।
अस्सी करोड़ खड़े लाइन में,
पास गलाने को न है दाल।
बताओ यह कैसा अमृत काल?
युवा घूम रहा है सड़कों पर,
तैयारी करते पक गये बाल।
बूढ़े पांच साल में पेंशन ले ले,
हो रहे हैं एक दम मालामाल।
बताओ यह कैसा अमृत काल ?
हीरे से मंहगा ट्रैक्टर बिक रहा,
जी एस टी से कृषि हुई बेहाल।
अरबों रुपए के विज्ञापन हो रहे,
सांड बन रहे किसान के काल।
बताओ यह कैसा अमृत काल ?
झूठे वादों की झड़ी लगाकर,
चुनाव में माननीय ठोंकें ताल ।
बात और कुछ करने लगते,
जनता पूछे जब कोई सवाल।
बताओ यह कैसा अमृत काल ?
निशि दिन कर करके विष वमन ,
खड़ी की जा रही नफरत की दीवाल।
धर्म जाति की राजनीति के बल,
फैलाया जा रहा झूठा भौकाल।
बताओ यह कैसा अमृत काल ?
दवा हवा सी हरकत कर रही,
उधेड़ रही मध्यम वर्ग की खाल।
पर्ची के सहारे सांस ले रहे,
साहेब सरकारी अस्पताल।
बताओ यह कैसा अमृत काल ?
शिक्षा में उपजायी मंहगाई से,
अभिभावक हो रहे बेहाल ।
लूट मची है विद्या के मंदिर में,
विद्या मंदिर बन गये हैं माल।
बताओ यह कैसा अमृत काल ?
– हरी राम यादव, अयोध्या, उत्तर प्रदेश