” त “,तस्वीर
प्रभु की,
हो अगर तुम्हें देखनी !
तो, देखलें मन अंदर झाँक के,
क्यूँ बाहर भटकते घूमते फिरते हो…,
अरे ज्ञानी वह तो बैठा भीतर ही तेरे !! 1!!
” थ “,थका-मांदा
पथिक रे,
ठहर रुक जरा यहाँ पे !
कहाँ तू भागा चला जा रहा,
पहले बात करले आत्माराम से…,
वह कब से बैठा तेरी राह तक रहा!! 2 !!
” ता “,तादात्म्य
बैठाए चल,
तू प्रभु संग अपने !
छोड़ दे मोह-माया मिथ्या आडंबर,
क्यूँ मारा-मारा फिरता यहाँ पर….,
पहले जीवन भेद तत्त्व ज्ञान जान लें !! 3!!
” तथता “, तथता
नहीं जड़ता,
बनें हम सभी तथागत !
चलें स्वयं को स्वयं से समझें,
बनें बुद्ध पुरुष ज्ञानी तथागत…,
और सम्यक भाव संग जीए चलें !! 4 !!
” तथता “, तथता
है सत्यता,
करें नित आगत का स्वागत !
सदा रहते वर्तमान तत्क्षण में,
हम करते रहें खोज आनंद की…..,
यही संदेश दे गए बुद्ध तथागत !! 5 !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान