फाल्गुन लाया स्मृतिशेष जब
मन मधुबन भी मुस्काया
रंगों से श्रृंगारत तन जब
बन मयूर तब इठलाया
अरुणाई से ली है लालिमा
मोती से लिया रंग श्वेत
छंट जाती हर धुंध कालिमा
खिला बसंत, हरित सब खेत
खिले पलाश जब पीतवर्ण
नृत्य कुलांचे भरे हिरण
कस्तूरी की महक है फैली
रास हो जैसे वृंदावन
रंग रंग सराबोर
शुभाशीष और हो वंदन
मिलकर रहें इस राष्ट्रबाग में
हिंदू मुस्लिम सिख क्रिश्चियन
होली के इस मंगल पर्व
प्रेम वर्ण का हो स्पंदन!
– डॉ मेघना शर्मा, बिकानेर, राजस्थान