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अविस्मरणीय गीत ज्योति कलश छलके के रचनाकार पं. नरेंद्र शर्मा – डॉ.मुकेश कबीर

neerajtimes.com – पंडित नरेन्द्र शर्मा हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की नींव के उन पत्थरों में से एक हैं जिन पर आज तक यह इंडस्ट्री टिकी हुई है। अक्सर बुनियादें भुला दी जाती हैं और तोरण द्वार याद रहता है यही हाल हमारी फिल्म इंडस्ट्री का है लेकिन बॉलीवुड इतिहास जब जब लिखा जाएगा तब तब पंडित नरेन्द्र शर्मा को धन्यवाद जरूर दिया जाएगा।

पंडित जी का सबसे आसान परिचय तो यह है कि उन्होंने फिल्म सत्यम शिवम सुंदरम के टाइटल सॉन्ग सत्यम शिवम की रचना की साथ ही इसका एक और अविस्मरणीय गीत यशोमती मैया भी लिखा लेकिन पंडित जी का यह परिचय सिर्फ मुखौटे जैसा है उनका पूरा व्यक्तित्व तो अपार है।

फिल्मों में आने से पहले वे एक क्रांतिकारी थे जो आजादी के लिए जेल भी गए और उन चुनिंदा कवियों में से एक थे जिनकी कलम की ताकत से अंग्रेज भी सहमते थे लेकिन पंडित जी ने इतनी चतुराई से अपने गीत लिखे कि चाहकर भी गोरी सरकार उनका बाल बांका नहीं कर पाई, फिल्म हमारी बात के गीत ऐसे ही थे। हमारी बात से पंडित जी की शुरुआत तो हो गई लेकिन उनको शोहरत मिली भाभी की चूड़ियां फिल्म के महान गीत ज्योति कलश छलके से। पिछले कुछ साल छोड़ दें तो यह गीत हर धार्मिक अवसर पर अनिवार्य रूप से बजाया जाता था,इसको शोभा यात्रा का नेशनल एंथम भी कहा जा सकता है खासकर सनातन संस्कृति के शुभायोजनो की पहचान यह गीत है और खास बात यह है कि इस गीत को लता जी ने भी अपना वन ऑफ दी बेस्ट माना था।

लता जी पंडित जी को अपना पिता मानती थीं और वैसा ही उनको सम्मान देती थीं और यदि म्यूजिकली देखा जाए तो पिता पुत्री की यह बॉन्डिंग उनके इस गीत के साथ हीऔर अन्य गीतों में भी महसूस की जा सकती है।

पंडित नरेन्द्र शर्मा जी ने फिल्मों के अलावा आकाशवाणी को स्थापित करने में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उनके द्वारा शुरू किए प्रोग्राम आज तक रेडियो पर प्रसारित होते हैं । आकाशवाणी का सबसे लोकप्रिय चैनल विविध भारती भी पंडित जी की ही देन है और इसका नामकरण भी उन्होंने ही किया है,आज भी विविध भारती सबसे ज्यादा सुना जाता है और इसका मूल स्वरूप भी अभी तक कायम है यह नरेंद्र शर्मा जी की दूरदर्शिता का ही परिणाम है।

नाम की यदि बात की जाए तो अपने जमाने के सुपर स्टार दिलीप कुमार का फिल्मी नामकरण संस्कार भी पंडित जी ने ही किया था, इसके पहले वो यूसुफ खान थे लेकिन देविका रानी के आग्रह पर पंडित जी ने नाम दिया दिलीप कुमार और आगे की कहानी हम सब जानते हैं कि यह नाम कितना चमका,यह बिल्कुल एक चिराग से दूसरे चिराग को रोशन करने जैसा है।

पंडित जी भले ही फिल्मों से जुड़े थे लेकिन उनका सम्मान साहित्यकारों जैसा ही था ।साहित्य में जितने सम्मान से पंत जी, निराला जी, बच्चन जी का नाम लिया जाता था उतने ही सम्मान से पंडित नरेंद्र शर्मा का नाम लिया जाता था यही कारण है कि भारत में जब पहली बार एशियाई खेलों का आयोजन हुआ तो सरकार ने स्वागत गीत लिखने की जिम्मेदारी पंडित जी को दी और इस तरह एशियाड का स्वागत गीत स्वागतम सुस्वागतम सारी दुनिया ने सुना। बी.आर चोपड़ा जब महाभारत बना रहे थे तब वो पंडित की शरण में ही गए और पंडित जी ने एक पिता और एक गुरु की तरह महाभारत में मार्गदर्शक की भूमिका निभाई और दुनिया का सबसे सफल टीवी सीरियल हमारे सामने आया। आमतौर पर फिल्मी गीतकारों का दायरा सीमित होता है यहां श्रृंगार रस की प्रधानता होती है लेकिन पंडित जी धर्म,राजनीति,समाज शास्त्र,मनोविज्ञान,दर्शन शास्त्र और ज्योतिष के ऐसे प्रकांड विद्वान थे कि सारी इंडस्ट्री उनके आगे  श्रृद्धा से झुकती थी,खासकर लता जी और राज कपूर जैसी हस्तियां उनको पिता तुल्य सम्मान देती थीं इससे बड़ा सम्मान बॉलीवुड में और क्या होगा ? वैसे पंडित जी थे भी इतने ही गरिमामय क्योंकि फिल्मी दुनिया में शुद्ध हिंदी गीत को लिखना और उनको स्थापित कराना आसान नहीं था।पर यह काम  किया पं. नरेंद्र  शर्मा ने और आज ऐसे ही विद्वानों की जरूरत है फिल्म इंडस्ट्री को जो इस कला माध्यम को अपराध की गर्त से निकालकर धर्म धरा पर प्रतिष्ठित कर सके इसलिए पंडित जी का स्मरण जरूरी है, तभी दुनिया में फिर से गूंजेगा ज्योति कलश छलके । (विनायक फीचर्स)(लेखक सुप्रसिद्ध गीतकार हैं)

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