हमारे बस में कहाँ तुझे पाना था,
खुद को बस यही समझाना था।
मालूम था कि न निबाह सकोगे,
मगर मासूम दिल तो दीवाना था।
तेरे इश्क़ में लूट सा गया हूँ मैं,
चाह कर भी ये न बताना था।
फितरते-यार मे थी बेवफाई और,
हमदर्दी तो महज़ इक बहाना था।
रौशनी का हवाला क्यूँ दे रहे हो,
जब शबे-तन्हाई तुझे आना था।
यूँ तो मिलने के सौ बहाने मगर,
रात भर इंतज़ार जो कराना था।
जानते थे होगा फरेब साथ मेरे पर,
निराश हके-मुहब्बत भी जताना था।
– विनोद निराश, देहरादून