साफ सुथरा हो परिवेश हमारा, स्वच्छ रहे पृथ्वी,
बादल समय से जल बरसायें, यही हमारी आस।
विचरण करती रहे चादनी, चांदी-सी मृदुहास,
फूल खिले हो भारत भू पर, सदा रहे मधुमास।
साफ-सफाई रहे भारत में, जन-जन का अभियान,
भारत है स्वर्गोपम सुंदर, करते हम अभिमान।
चंदामामा की धरती पर, भेजा हमने यान,
दादी के हाथों से निर्मित, मीठा – सा पकवान।
चंदन जैसी पावन माटी, तिलक लगाते भाल,
सूरज भी आरती उतारें, ले सोने की थाल।
रत्नों को धारण करती है, वसुधा इसका नाम,
पालन-पोषण जीवन देना,यही धरती माँ का काम।
धरा स्वच्छ हो यही कामना,हम करते दिन-रात,
स्वर्ग बनायें हम धरती को, सोचें सारी बात।
वंदनीय है धरती माता झुका रहा मैं यह शीश,
युगों- युगों तक कायम रखना,हे ! मेरे जगदीश।
– कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार, रूद्रप्रयाग उत्तराखण्ड