सुनते नही हैं आज वो…
मेरी आंखों की खामोशी को…
लगता है प्रेरित कर रहे हैं खुद को….
मुझसे दूर जाने को…
आज समझ नहीं आता उन्हे…
चिल्लाना मेरी खामोश आखों का….
देखना कल रूला देगा उनको …
मेरा खामोश हो जाना…
जरूरी तो नही …
हर बात कहूँ…
उनको लबों से अपने…
कुछ लफ्ज़ ….
मेरी आंखे बयां करती है …
बिन बोले ही….
आज नही समझते हैं …
वो मेरी उस भाषा को…
जो बयां करती है मेरी आंखे…
देखना कल ढूंढगे वो रोकर मेरी…
खामोश बोलती आंखों को…
नहीं जानती …
वो क्या सोचता है मेरे बारे मे ?
पर जाने के बाद मेरे…
रह जाऊँगी बस मैं ही…
सोचने के लिए पास उनके….
सुनीता मिश्रा, जमशेदपुर