जब प्रेम महकता है|
मानो, केशों में मोगरा खिलता है|
महक उठता है वजूद, और
हृदय बहक उठता है|
काया संतूर जैसे झंकृत हो उठे,
और,पीर से मन झूमता हैं|
प्रेम सुरभि रोम- रोम छूकर,
बंद आंखों से हृदय उतरकर,
सहसा,,,,
अदृश्य होकर दृश्य हो जाता है|
प्रेम का सम्मोहन रति सा मुझे,
तेरे मोहपाश में बांधता है|
और कभी,,
माझी बनकर मेरी नैया को,
जग सागर से पार लगाता है|
– रश्मि मृदुलिका, देहरादून , उत्तराखंड