नाकामियों के डर से वो घर छोड़कर गया,
समझा न बात मेरी वो गहरे उतर गया।
शिकवा किया बड़ा अकेला शहर गया,
धोखा दिया है यार ने नजरों से गिर गया।
करते रहे थे प्यार अजी देवता समझ,
नाराज इस कदर वो हमें छोड़कर गया।
लूटा हमें अदा से खिलौना ही मान कर,
बर्बाद कर के हमको वही जानवर गया।
यूँ हसरतों में खो गया मैं सोचता रहा,
बिन आपके मैं काँच सा अब तो बिखर गया।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़