पल-पल क्षण-क्षण , बीत रहा है,
जीवन- घट नित , रीत रहा है ।
कैसा मोह , कौन से आशा,
कौन सदा यहाँ , मीत रहा है ।
<>
बहे जाना नदी की धार से , रुकना नहीं राही,
गति है नाम जीवन का ,कभी थकना नहीं राही ।
मिलेंगे फूल संग में शूल भी, होंगे ये निश्चित है ,
भले लाखों मिले मुश्किल, कभी झुकना नहीं राही ।
✍️.. मीनू कौशिक “तेजस्विनी”, दिल्ली